राजस्थान की मिट्टियाँ

राजस्थान की मिट्टियाँ

मूल रूप से राजस्थान की मिट्टियाँ निर्वासित एवं अवशिष्ट प्रकार की हैं। मिट्टी (मृदा) भूमि की ऊपरी सतह होती है, जो चट्टानों के टूटने-फूटने एवं विघटन से उत्पन्न सामग्री तथा उस पर पड़े जलवायु, वनस्पति एवं अन्य जैविक प्रभावों से विकसित होती है।

राजस्थान की मिट्टियाँ (Rajasthan ki Mittiyan)

राजस्थान में निम्नलिखित प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं :-

1. रेतीली या बलुई मिट्टी

2. भूरी रेतीली मिट्टी

3. लाल-पीली मिट्टी

4. लाल लोमी मिट्टी

5. लाल-काली मिट्टी

6. काली मिट्टी

7. कछारी या जलोढ़ मिट्टी

8. भूरी-रेतीली कछारी मिट्टी

1. रेतीली या बलुई मिट्टी

विशेषता– यह कम उपजाऊ, कम नाइट्रोजन, कम लवणता तथा कम नमी संचित रखने वाली मिट्टी है। यह मृदा मुख्यतः अन्तरस्टेपीय क्षेत्रों में पायी जाती है। वर्षा की कमी और ढीली संरचना के कारण इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति में कमी आ जाती है। इसमें नमक का अंश अधिक होता है।

विस्तार– जैसलमेर, बाड़मेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, जोधपुर, नागौर, पाली एवं जालौर।

इस मिट्टी को पुनः चार उपविभागों में विभाजित किया गया है:-

(अ) रेतीली बालू मिट्टी

इस मिट्टी में 90-95% बालू कण तथा 5-10% मृत्तिका पायी जाती है। इस मृदा के अन्दर घुलनशील लवणों की मात्रा अधिक होती है। इस मृदा का pH मान भी अधिक होता है। इस मृदा में नाइट्रोजन की कमी होती है। जल की उचित आपूर्ति होने पर इस मृदा की उर्वरा शक्ति में बढ़ोतरी हो जाती है, तब इस परिस्थिति में इस मृदा में अनेक फसलें अच्छी उपज देती हैं।

(ब) लाल रेतीली मिट्टी

इस मिट्टी का रंग पीला, भूरा व गहरा लाल होता है। इसमें नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है। इस मिट्टी की संरचना बलुई कांप व बलुई चीका कांप से होती है। जल की सुविधा वाले क्षेत्रों में इस मृदा पर विभिन्न फसलें सफलतापूर्वक उत्पादित की जाती है। राज्य में इस मृदा का विस्तार नागौर जोधपुर पाली, जालौर, चुरू एवं झुंझुनू जिलों में पाया जाता है।

(स) पीली-भरी रेतीली मिट्टी

इस मिट्टी में रेत व बालू दोमट का मिश्रण होता है। 100-150 सेमी. की गहराई में इस मिट्टी में चूना मिश्रित मिट्टी की परत पाई जाती है। यह कृषि की दृष्टि से उत्तम मृदा मानी जाती है। यह स्टेपी मिट्टी से मिलती-जुलती प्रतीत होती है। राज्य में इस मिट्टी का विस्तार पाली एवं नागौर जिले में है।

(द) खारी मिट्टी

इस मृदा में लवण की मात्रा बहुत अधिक होती है। यह निम्न भूमि एवं गर्तों में पायी जाने वाली मृदा है। कृषि की दृष्टि से यह अच्छी नहीं होती है। राजस्थान की इस मिट्टी का विस्तार बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर एवं नागौर जिलों में है।

2. भूरी-रेतीली मिट्टी

यह भूरे रंग की मृदा है। यह राज्य के लगभग 36,400 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। इस मृदा का अधिकांश क्षेत्र अरावली पर्वतमाला के पश्चिमी भाग में है। इस मृदा में नाइट्रेट की मात्रा अधिक होती है, जो मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करती है।

इस मृदा में फॉस्फेट के तत्वों का मिश्रण होता है। कही-कहीं इसमें कापीय और चूनेदार कंकड़ों का भी मिश्रण पाया जाता है। इस प्रकार की राजस्थान की मिट्टियाँ बाड़मेर, जालौर, जोधपुर, सिरोही, पाली, सीकर, नागौर एवं झुंझुनू जिले में पायी जाती है।

3. लाल व पीली मिट्टी

इस मृदा में नमी की अधिकता होती है। इस मृदा का लाल व पीला रंग लौह ऑक्साइड की अधिक मात्रा में उपस्थिति के कारण होता है। इस मृदा में चीका व दोमट मृदा की प्रधानता पायी जाती है। इसमें नाइट्रोजन एवं ह्यूमस की कमी होती है।

इस मृदा का विकास ग्रेनाइट, शिस्ट, नीस आदि चट्टानों के टूटने (अपक्षय) से हुआ है। इस मृदा में मूंगफली एवं कपास की खेती प्रमुखता से की जाती है। राज्य में इस मृदा का विस्तार अजमेर, उदयपुर, भीलवाड़ा, सिरोही आदि जिलों में पाया जाता है।

4. लाल लोमी मिट्टी

इस मिट्टी की संरचना प्राचीन रवेदार एवं कायान्तरित शैलों से हुई है। इसमें चूना, पोटाश, लौह ऑक्साइड और फॉस्फोरस की मात्रा कम पायी जाती है। यह मिट्टी लौह-कणों के सम्मिश्रण के कारण लाल दिखायी पड़ती है।

इसमें नाइट्रोजन व ह्यूमस की मात्रा भी कम होती है। इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति सभी जगह एक जैसी नहीं होती है। यह राजस्थान की मिट्टियाँ उदयपुर, बांसवाड़ा तथा डूंगरपुर जिलों में पायी जाती है। इस मिट्टी में मक्का की फसल अच्छी होती है।

5. लाल व काली मिट्टी

यह मिट्टी ग्रेनाइट एवं नीस शैलों के टूटने से बनी है। इसमें फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, कार्बनिक पदार्थ (Humus) की कमी होती है। ऐसी मिट्टी में कपास और मक्का की फसल अच्छी होती है। वैसे यह सभी फसलों के लिए उपयोगी होती है। राज्य में इस मृदा का विस्तार डूंगरपुर, उदयपुर, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ जिलों में पाया जाता है।

6. काली मिट्टी

इस मिट्टी में फॉस्फेट, नाइट्रोजन और जैविक पदार्थों की कमी होती है, लेकिन इसमें कैल्शियम एवं पोटाश की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में होती है। यह मिट्टी में कपास की खेती के लिए सर्वाधिक उपयोगी होती है। राज्य में इस मृदा का विस्तार कोटा, बूंदी एवं झालावाड़ जिलों में पाया जाता है।

7. जलोढ या कछारी मिट्टी

यह एक उपजाऊ मिट्टी है। राज्य के पूर्वी भू-भाग में इस का बाहुल्य अधिक पाया जाता है। लाल रंग की इस मिट्टी में चूना, फॉस्फोरिक अम्ल और ह्यूमस की कमी होती है। इसमें कैल्शियम व फॉस्फेट की भी कमी होती है। इस पर लवणीय एवं क्षारीय मृदा के छोटे-छोटे भू-भाग पाये जाते हैं, साथ-ही-साथ इसमें कहीं-कही कंकड़-पत्थर भी मिलते हैं।

इस मिट्टी की उर्वरता अधिक होती है, जिस कारण इसमें सभी फसलों की खेती प्रमुखता से की जाती है। इस प्रकार की राजस्थान की मिट्टियाँ भरतपर, जयपुर, टोंक एवं सवाईमाधोपुर जिले में पायी जाती है।

8. भूरी रेतीली कछारी मृदा

राज्य में इस मिट्टी का विस्तार अलवर एवं भरतपुर के उत्तरी तथा गंगानगर जिले के मध्यवर्ती भाग में पाया जाता है। इसका रंग कुछ लालपन व भूरापन लिये हुए है। इसमें फॉस्फोरस एवं हृयूमस की कमी रहती है।

गंगानगर एवं अलवर जिलों में इस मृदा का रंग भूरा तथा भरतपुर में कुछ लालपन लिये हुए है। इस मृदा में गेहूं एवं कपास की खेती सफलतापूर्वक की जाती है।

राजस्थान की मिट्टियाँ
राजस्थान की मिट्टियाँ

राजस्थान की मिट्टियाँ – महत्वपूर्ण तथ्य

  • राजस्थान की अधिकांशत: मिट्टी भूरी-बलुई दोमट प्रकार की है।
  • राज्य के 10 मरुस्थलीय जिलों में ‘मरु प्रसार रोक योजना‘ चलाई जा रही है।
  • राजस्थान में प्रथम मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला 1958 में जोधपुर में स्थापित की गई।
  • 1952 में जोधपुर में ‘मरुस्थल वृक्षारोपण एवं अनुसंधान केन्द्र’ खोला गया।
  • राजस्थान में केन्द्रीय भू-संरक्षण बोर्ड जयपुर व सीकर में स्थित है।
  • अपरदन एवं अपक्षरण की समस्या को ‘रेंगती हुई मृत्यु‘ कहते हैं।
  • रेगिस्तान का आगे बढ़ना ‘रेगिस्तान का मार्च’ कहलाता है।
  • राजस्थान के 14 जिलों में ‘बंजर भूमि विकास कार्यक्रम‘ चलाया जा रहा है।
  • मिट्टी की क्षारीयता की समस्या के समाधान हेतु जिप्सम उपयोगी है।
  • मिट्टी की लवणीयता मिटाने के लिए रॉक फॉस्फेट उपयोगी है।
  • नहरी क्षेत्र (हनुमानगढ़, गंगानगर) में ‘सेम की समस्या (जलाधिक्य से दलदल) रोकने के लिए सफेदा पादप उपयोगी है।
  • सेम की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित जिला हनुमानगढ़ है।
  • कोशिकाओं द्वारा नीचे से ऊपर की ओर रिसाव के कारण पश्चिमी मरुस्थल की मिट्टियाँ अम्लीय और क्षारीय होती है।
  • कपास उत्पादन के लिए काली मिट्टी सर्वाधिक उपयोगी होती है
  • राजस्थान में सर्वाधिक बंजर भूमि जैसलमेर में, परती भूमि जोधपुर में और व्यर्थ पठारी भूमि राजसमंद में है।
  • राज्य में लोयस मिट्टी का जमाव सवाई माधोपुर, करौली और झुंझुनूं जिलों में है।
  • राज्य में सर्वाधिक बीहड़ भूमि सवाई माधोपुर और करौली में है।