
छंद की परिभाषा
अक्षरों की संख्या एवं क्रम, मात्रा, गणना तथा यति-गति से संबंध विशिष्ट नियमों से नियोजित पद्ध रचना ‘छंद’ कहलाती है। सर्वप्रथम छंद की चर्चा ऋग्वेद में हुई थी।
छंद के अंग
छंद में 8 अंग होते है।
- पाद
- मात्रा और वर्ण
- संख्या और क्रम
- लघु और गुरु
- गण
- यति
- गति
- तुक
छंद के प्रकार
छंद वर्ण और मात्रा के विचार से 4 प्रकार के होते है। वार्णिक छंद, वार्णिक वृत्त, मात्रिक छंद और मुक्त छंद।
1. वार्णिक छंद की परिभाषा
केवल वर्ण गणना के आधार पर रचा गया छंद वार्णिक छंद कहलाता है। 1 से 26 वर्ण तक के चरण रखने वाले वार्णिक छंद साधारण होते है और इससे अधिक वाले दण्डक।
2. वार्णिक वृत्त
वृत्त उस समछन्द को कहते है, जिसमें चार समान चरण होते है और प्रत्येक चरण में आने वाले वर्णों का लघु गुरु- क्रम सुनिश्चित रहता है।
7 भगण और 2 गुरु का मत्तगयंद सवैया।
वार्णिक वृत्त छंद के उदाहरण –
3. मात्रिक छंद की परिभाषा
मात्रा की गणना पर आधारित छंद ‘मात्रिक छंद’ कहलाते है। दोहा, चौपाई आदि मात्रिक छंद हैं।
4. मुक्त छंद
चरणों की अनियमित, असमान स्वछंद गति और भावनुकूल यतिविधान ही मुक्त छंद की विशेषता है। यह एक प्रकार का लयात्मक काव्य है।
प्रमुख छंद की परिभाषा
1. चौपाई
यह मात्रिक स्वछंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएं होती है। चरण के अंत में जगण (151) और तगण (551) का आना वर्जित है। पहले चरण की तुक दूसरे से एवं तीसरे की चौथे से मिलती है।
चौपाई के उदाहरण
गुरु पद रज मृदु मंजुल मंजन। नयन अमिय दृग दोष विभंजन।।तेह करि विमल विवेक विलोचन। बरनऊँ रामचरित भवमोचन।।
2. रोला छंद की परिभाषा
यह मात्रिक स्वछंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएं होती है। प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण होते है।
रोला छंद के उदाहरण
3. हरिगीतिगा
यह भी मात्रिक स्वछंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 29 मात्राएं होती है।
हरिगीतिगा के उदाहरण
कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए।हिम के कणों से पूर्ण मानों हो गए पंकज नए।।
4. बरवै
यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है। इस छंद के विषम चरणों में 12 मात्राएं और सम् चरणों में 7 मात्राएं होती है।
बरवै का उदाहरण
5. दोहा छंद की परिभाषा
यह मात्रिक अर्द्धसम छंद है। इसके विषम चरणों में 13-13 मात्राएं एवं सम् चरणों में 11-11 मात्राएं होती है। इसके सम् चरणों के अंत में लघु वर्ण होना चाहिए एवं तुक सम् चरणों में होनी चाहिए।
दोहा का उदाहरण
श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार। बसऊ रघुवर विमल जस, जो दायक फल चार।।
6. सोरठा
यह भी मात्रिक अर्द्धसम छंद है। यह दोहे का उल्टा होता है अर्थात विषम चरणों में 11-11 मात्राएं एवं सम् चरणों में 13-13 मात्राएं होती है, तुक प्रथम एवं तृतीय चरण में होती है।
सोरठा का उदाहरण
निज मन मुकुर सुधार, श्री गुरु चरन सरोज रज।
7. कुण्डलिया छंद की परिभाषा
यह एक विषम मात्रिक संयुक्त छंद है। यह दोहा और रोला छंदों को मिलाकर बनता है। इसके 6 चरण होते है, प्रथम चरण दोहे के प्रथम एवं द्वितीय चरण तथा द्वितीय चरण दोहे के तृतीय एवं चतुर्थ चरण को मिलाकर बनता है। अंत में रोल के चरण क्रमशः तृतीय, चतुर्थ, पंचम एवं षष्ट चरण पूरा करते है। इसमे दोहे के प्रारंभ का शब्द रोले के अंत में आता है।
कुण्डलिया का उदाहरण
8. सवैया
यह एक वार्णिक समवृत्त छंद है। इसके एक चरण में 22 से 26 तक वर्ण होते है। इसके कई भेद है। एक मत्सगयंद सवैया है जिसके प्रत्येक चरण में 7 भगण और अंत में 2 गुरु होते है। इसके चारों चरणों में तुकांत होता है।
सवैया का उदाहरण