
राजस्थान के लोक देवता से तात्पर्य उन महापुरुषों से है, जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने चमत्कारिक तथा अतिमानवीय लोक कल्याणकारी कार्यों के कारण जनमानस में दैविक अंश के प्रतीक बन गए।
राजस्थान को लोक देवी-देवताओं की भूमि भी कहा जाता है। राजस्थान की पावन भूमि पर अनेक वीर पुरुषों और देवियों ने जन्म लेकर लोक कल्याणकारी कार्य करके यहाँ के लोगों में पूजनीय बन गए।
राजस्थान के लोक देवता
1. रामदेवजी
जन्म और स्थान |
रामदेवजी का जन्म बाड़मेर जिले की शिव तहसील के उंडूकासमेर गाँव में भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को विक्रम संवत 1462 में हुआ था। |
रामदेवजी का मेला |
रामदेवरा (रूणेचा) गाँव में इनकी समाधि पर प्रतिवर्ष भाद्रपद द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है, जो राजस्थान में साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। इस दिन रामदेव जी के भक्तों द्वारा रात्रि सत्संग किया जाता है, जिसे ‘जम्मा’ कहते हैं। |
पिता का नाम |
अजमलजी (तंवरवंशीय) |
माता का नाम |
मैणादे |
पत्नी का नाम |
रामदेव जी का विवाह अमरकोट (पाकिस्तान) के सोढ़ा दलेलसिंह की पुत्री नेतलदे (निहालदे) से हुआ था। |
गुरु |
बालीनाथजी |
बहन |
लाछा बाई और सुगना बाई |
मुंह बोली बहन |
डाली बाई (मेघवाल जाति) |
निवास स्थान |
जैसलमेर जिले में पोकरण के पास रुणेचा (रामदेवरा) |
रामदेव जी के अन्य मंदिर |
मसूरिया पहाड़ी (जोधपुर), बाराठिया (पाली), सूरतखेड़ा (चित्तौड़गढ़) |
छोटा रामदेवरा |
गुजरात |
रामदेव जी के प्रमुख पूजा स्थल |
रुणेचा (जैसलमेर), उडूकासमेर (बाड़मेर), बिठुजा (बालोतरा), सूरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़) और बाराठिया (पाली) |
रामदेव जी की पूजा |
चूरमा, दूध, नारियल, धूप से |
- रामदेव जी मारवाड़ के पंचपीरों में से एक हैं।
- रामदेव जी ने रामदेवरा में रामसरोवर तालाब बनवाया था। इसी तालाब के किनारे रामदेव जी भाद्रपद सुदी एकादशी विक्रम संवत 1515 को जीवित समाधि ली थी।
- डालीबाई ने रामदेव जी से 1 दिन पूर्व रामदेवरा में ही जीवित समाधि ली थी, जहाँ डालीबाई का मंदिर बना है।
- रामदेवरा के मेले का आकर्षण तेरहताली नृत्य है, जो कामड़ जाति की महिलाओं द्वारा किया जाता है।
- कामड़ जाति के भोपों द्वारा ही रावणहत्था वाद्य के साथ रामदेव जी की फड़ का वाचन किया जाता है।
- रामदेवजी को हिन्दू ‘कृष्ण का अवतार‘ मानते हैं और मुस्लिम इन्हें ‘रामसा पीर‘ कहते हैं।
- रामदेव जी के मंदिर को देवरा कहते हैं, जिस पर 5 रंग की ध्वजा (नेजा) फहराई जाती है।
- रामदेव जी का प्रतीक चिह्न पगलिया (पत्थर पर) है, जिनको रामदेव जी के मेघवाल भक्त रिखिया कहते हैं।
- रामदेव जी के प्रतीक चरण चिह्नों (पगलिये) को खुले चबूतरे पर ताख में रखे जाते हैं तथा गाँव-गाँव पूजे जाते हैं।
- ये एकमात्र राजस्थान के लोक देवता हैं, जो कवि भी थे।
- रामदेवजी ने ‘चौबीस वाणियाँ‘ ग्रंथ लिखा और कामड़ पंथ की स्थापना की। कामड़ पंथ में स्वर्ण एवं अछूत दोनों जातियों के अनुयायी थे।
- रामदेव जी का यशोगान पर्चा में होता है तथा भक्तों द्वारा ब्यावले बाँचे जाते हैं।
- राजस्थान के लोक देवता रामदेवजी के पगल्यों (पदचिह्नों) की पूजा होती है। इनके मंदिरों की पंचरंगी ध्वजा को नेजा कहते हैं।
- रामदेवरा (रूणेचा) गाँव में इनकी समाधि पर प्रतिवर्ष भाद्रपद द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है, जो राजस्थान में साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक है। इस दिन रात्रि जागरण भी होता है जिसे ‘जम्मा’ कहते हैं।
- रामदेव जी बाल्यावस्था में ही सातलमेर (पोकरण) में भैरव नामक क्रूर राक्षस को मार डाला था।
- रामदेव जी के मंदिर में कपड़े का नीला घोड़ा चढ़ाते हैं।
- रामदेव जी के वाहन नीले घोड़े को ‘गोगा बप्पा’ के नाम से भी पुकारा जाता है।
- रामदेव जी को कृष्ण का अवतार माना जाता है। कुछ लोग रामदेव जी को अर्जुन के वंशज मानते हैं।
2. गोगाजी
जन्म और स्थान |
गोगाजी का जन्म भाद्रपद कृष्ण नवमी को वि.सं. 1003 में चूरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था। ददरेवा (चूरू) को शीर्ष मेड़ी कहते हैं। |
गोगाजी का मेला |
भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगानवमी) को गोगामेड़ी (नोहर, हनुमानगढ़) में गोगाजी का मेला भरता है। |
पिता का नाम |
जेवर (जीवराज जी चौहान) |
माता का नाम |
बाछल देवी |
पत्नी का नाम |
कमलादे (कोलूमंड़ की राजकुमारी) |
गोगाजी के मंदिर |
गोगामेड़ी (नोहर, हनुमानगढ़), ददरेवा (चूरू) और गोगाजी की ओल्डी (सांचौर, जालोर) |
- गोगाजी ने 47 पुत्रों तथा 60 भतीजों के साथ महमूद गज़नवी से युद्ध किया था। युद्ध में गोगा जी का सिर कटकर ददरेवा (चूरू) में गिरा था, जिसे ‘शीर्षमेड़ी’ कहा जाता है, तथा धड़ गोगामेड़ी (नोहर, हनुमानगढ़) में गिरा था, जिसे ‘धुरमेड़ी’ कहा जाता है, जहाँ आज गोरख तालाब बना हुआ है।
- सांचौर (जालोर) में गोगाजी के मंदिर को ‘गोगाजी की ओल्डी’ कहते हैं।
- महमूद गज़नवी ने गोगाजी को ‘जाहरपीर’ की उपाधि दी थी।
- गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) में गोगाजी के विशाल मेले का आयोजन होता है। इस मंदिर में एक हिंदू व एक मुस्लिम पुजारी रहता है जो सांप्रदायिक एकता का परिचायक है।
- सर्पदंश के उपचार हेतु गोगाजी का आह्वान किया जाता है।
- गोगाजी की पूजा खेजड़ी के वृक्ष के नीचे की जाती है।
- हल जोतने से पहले हल व हाली (हल चलाने वाला) दोनों को गोगा राखड़ी (राखी) बांधी जाती है।
- राजस्थान के लोक देवता गोगाजी का प्रतीक चिह्न पत्थर पर अंकित सर्प है।
- गोगामेड़ी को बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने वर्तमान स्वरूप प्रदान किया था।
- गोगामेड़ी की बनावट मकबरानुमा है और दरवाजे पर बिस्मिल्लाह लिखा हुआ है।
3. वीर तेजाजी
जन्म और स्थान |
तेजाजी का जन्म 29 जनवरी, 1074 ई. को गुरुवार के दिन (माघ शुक्ल चतुर्दशी वि.सं. 1130) खरनाल गाँव (नागौर) में हुआ था। |
पिता का नाम |
तेजाजी के पिता का नाम ताहड़देव धौलिया (बोहित राज के पुत्र) |
माता का नाम |
रामकँवरी (त्योद निवासी दुल्हण जी सोढी की पुत्री) |
पत्नी का नाम |
तेजाजी का विवाह विक्रम संवत 1131 में राव रायमलजी मुहता (पनेर, अजमेर) की पुत्री ‘पेमलदे’ से हुआ था। |
भाभी का नाम |
तेजाजी को ताना मारने वाली भौजाई का नाम रतनावती (रतनाई) था |
भाई का नाम |
तेजाजी के बड़े भाई का नाम ‘रूपजीत’ था। |
- तेजाजी को राजस्थान का प्रमुख आराध्यदेव माना जाता है।
- वीर तेजाजी को कृषि का उपकारक, गायों के मुक्तिदाता, पशुधन का तारक व सर्प विष के निवारक देवता के रूप में पूजा जाता है।
- वीर तेजा जी को काला व बाला का देवता तथा कृषि कार्यों का उपकारक देवता कहा जाता है।
- तेजाजी के पुजारी को घोड़ला तथा चबूतरे को थान (मंदिर) कहते हैं।
- राजस्थान के लोक देवता वीर तेजाजी ने लाछा गुजरी (तेजाजी की पत्नी पेमलदे की सखी) की गायों को चांग स्थान के चीतावंशी मेर मीणाओं से आजाद करवाया था।
- इनको मूर्ति में तलवार, ढाल, भाला, तीर, कमान धारी अश्वारोही योद्धा के रूप में अंकित किया जाता है।
- तेजाजी ने सुरसुरा (अजमेर) में 28 अगस्त, 1103 ई. को शनिवार के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी विक्रम संवत 1160 में) बासग नाग द्वारा डसने के कारण अपनी देह का त्याग किया था।
- तेज जी की मत्यु का समाचार इनकी घोड़ी लीलण ने तेजाजी के घर खरनाल पहुँचाया था।
- प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल एकादशी से भाद्रपद कृष्ण पंचमी तक परबतसर (नागौर) में वीर तेजाजी पशु मेले का आयोजन होता है।
मारवाड़ के पंचपीर
गोगाजी, रामदेवजी, पाबूजी, हड़बूजी और माँगलिया मेहा जी को मारवाड़ के पंचपीर कहा जाता है।